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इस्तांबुल - एक अपना सा शहर

“अगर पूरी धरती एक देश होती, तो इस्तांबुल उसकी राजधानी”

नेपोलियन




इस्तांबुल…इस दुनिया में मेरी सबसे पसंदीदा जगह। एक ऐसा शहर जिसके बारे में ना जाने कितने कवियों और लेखकों ने सुंदर साहित्य लिखा है, अनेकों बार मानव इतिहास के पन्नों पर  इसका ज़िक्र हुआ है और सदियों से इसकी प्रसिद्धि में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आयी है। इस शहर की ख़ूबसूरती, रंगीनी, उदासी, ख़ुशियाँ सब अद्वितीय हैं, हर बार इस्तांबुल जाकर मेरी ये सोच और पुख़्ता होती जाती है। 



हर बार यहाँ आकर मैंने एक सुकून महसूस किया है। बीस साल की उम्र में अपने देश से बाहर पहली बार जिस शहर में क़दम रखा था वो यही था, और पहली नज़र में ही मुझे इस शहर से प्यार हो गया था, जो आज तक बरक़रार है। इस्तांबुल की तमाम ख़ासियतों में से एक ये है कि ये वो जगह है "जहां पूर्व पश्चिम से मिलता है", दूसरे शब्दों में "जहां एशिया यूरोप से मिलता है”। सिर्फ़ भौगोलिक तौर पर ही नहीं, यहाँ हर नज़रिए से दो संस्कृतियों का मिलन होता है। 



इस्तांबुल की तमाम छोटी बड़ी गलियाँ एक ओर जहाँ ओट्टोमन साम्राज्य के भव्य दिनों की कहानी बयान करता है, वहीं दूसरी ओर अतातुर्क द्वारा किए गए क्रांतिकारी सामाजिक सुधार और उसकी महत्ता को भी दर्शाती हैं। इस शहर की इसी ख़ासियत ने मेरी सोच बदली है। ये जगह प्राचीन साम्राज्यों की भव्यता, विश्व युद्धों के दर्द और मुस्तफ़ा कमाल की आधुनिक प्रगतिवादी सोच का प्रतीक हैं। यहाँ मैंने सीखा है कि आधुनिकता और संस्कृति, दोनों बिना किसी प्रतिस्पर्धा या घर्षण के, एक साथ रह सकते हैं। 



इस्तांबुल एक मस्जिदों, मीनारों, ऐतिहासिक बाज़ारों और टावरों के साथ साथ बिल्लियों, कबाब, कॉफ़ी और सूफ़ी दरविशों का शहर भी है - एशिया और यूरोप के बीच, काला सागर और भूमध्य सागर से घिरा। किसी मध्यकालीन सुल्तान के दरबार के राजदूत ने एक बार कहा था कि इसे प्रकृति ने दुनिया की राजधानी होने के लिए ही डिज़ाइन किया है, और मैं उसकी इस बात से पूरी तरह इत्तेफ़ाक रखती हूँ। इस्तांबूल वास्तविक रूप से एक भौगोलिक राजनीतिक शहर है। यह देखते हुए कि यह सदियों तक रोमन, बीजान्टिन और ओटोमन जैसे शक्तिशाली साम्राज्यों की राजधानी थी, शायद यह तथ्य इतना आश्चर्यजनक भी प्रतीत नहीं होता। जब अतातुर्क ने अंकारा को तुर्की की राजधानी बनाया, तो कई लोगों लगा की ये शहर अब कभी अपने भूतपूर्व गौरव को खो देगा, पर ऐसा सोचना ग़लत साबित हुआ। 





यहाँ हर कोने में हर अलग अलग सदियों का इतिहास दर्ज है - रोमन शिलालेख, बीजान्टिनी दीवारें, औटोमन स्नानघर, टोपकापी महल, आया सोफ़िया..हर जगह की अपनी एक कहानी है, कुछ दर्द भरी तो कुछ ख़ुशनुमा। अपने हर क़दम के साथ हम सभ्यताओं के अलग चरणों में प्रवेश कर जाते हैं। ये पूरा शहर इतिहास के विभिन्न तारीख़ों की निशानी लगता है, 14 वीं शताब्दी के गलाटा टॉवर के शीर्ष से लेकर, रोमन काल के सिस्टर्न और छठी सदी में बन कर निर्मित आया सोफ़िया चर्च तक। 



अब अगर पर्यटन के पहलू पर चर्चा करें तो, ऐसे पर्यटकों के लिए भी इस्तांबुल यात्रा करना सम्भव है, जिनके पास समय की कमी हो। एक ही दिन में यहाँ के कई खास आकर्षणों पर दस्तक दी जा सकती है: नीली मस्जिद, आया सोफिया, ग्रैंड बाजार और हाँ गलाटा टावर भी। 



अगर शुरुआत ग्रैंड बाज़ार से करें, इस्तांबुल में कपाली कार्सी, जिसका अर्थ है "कवर बाजार", जिसे द ग्रैंड बाज़ार भी कहा जाता है, एक ऐसी जगह है जो अपने ध्वनियों, रंगों और ख़ुश्बू के साथ आपके दिमाग में एक स्थायी निशान छोड़ देगी। ये बाज़ार लंदन के आक्स्फ़र्ड स्ट्रीट और दिल्ली के चाँदनी चौक से भी पुराना है। 


यहाँ एक पागलपन जैसा माहौल होता है- सभी दिशाओं से दुकानदार आपको बुलाते हैं और हर कोई आपको कुछ ऐसा बेचने का दावा करता है जो आपकी ज़िंदगी बदल देगा। यह स्थान ख़रीददारी से ज़्यादा सौदेबाजी के लिए जाना जाता है। पाँच हज़ार से अधिक दुकानों वाले इस छे सौ वर्ष पुराने बाज़ार को दुनिया का सबसे पहला शॉपिंग मॉल कह सकते हैं। पर्यटकों से भरी जगहों पर ख़रीददारी करना मेरी आदत नहीं, कोशिश यही करती हूँ की जितना हो सके कम पैसों में घूम सकूँ, पर खाना बनाने के शौक़ की वजह से और इस बाज़ार मे बिखरी मसालों की महक से अभिभूत होकर मैंने आख़िरकार कुछ ख़रीददारी कर ही ली। यहाँ ना जाने आजतक कितने सौदे हुए, कितने लोग मालामाल हुए, कितने लोग बर्बाद हुए। क़रीब ५ घंटे घूमने के बाद मैंने अपनी टर्किश दोस्त से कहा, “ये बाज़ार तो ख़त्म ही नहीं होता।” मेरी दोस्त ने जवाब दिया, “ये बाज़ार कोई मामूली सिर्फ़ एक बाज़ार नहीं, एक धरोहर है, इसका अपना एक अस्तित्व है,और वहाँ समान बेचने वाले लोग इस शहर की रूह हैं।” 




वहाँ से निकलकर सामने आया सोफ़िया की इमारत दिखती है। आया सोफिया - चर्च ऑफ द होली विज़्डम- छठी शताब्दी में बनाया गया था और दुनिया के आश्चर्यों में से एक है। यह एक वर्ग आधार पर एक गोलाकार गुंबद रखने की पहेली को हल करने वाली पहली इमारत थी, ब्रूनलेस्ची के फ्लोरेंस से लगभग एक हजार साल पहले। जब आप आया सोफ़िया के अंदर क़दम रखते हैं तो इसकी भव्यता आपको सबसे ज़्यादा आकर्षित करेगी, इस इमारत ने एक चर्च और एक मस्जिद दोनो होने का गौरव प्राप्त किया है। यहाँ आपको जीसस की कलाकृतियों के साथ इस्लामिक मंत्र भी दिख जाएँगे। इसे लगभग 1,500 साल पहले एक ईसाई बेसिलिका के रूप में बनाया गया था। पेरिस के एफिल टॉवर या इटली के लीनिंग टावर औफ़ पीसा की तरह, आया सोफिया इस महानगरीय शहर का एक स्थायी प्रतीक है। इसकी संरचना जितनी ही उल्लेखनीय है, इस्तांबुल के इतिहास, राजनीति, धर्म और कला में उसकी भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण। यहाँ शैली और भव्यता का शानदार मिश्रण हैं।




आया सोफ़िया के सामने इस्तांबुल का सबसे प्रसिद्ध मस्जिद है, सुल्तान अहमद मस्जिद, हम जिसे ब्लू मॉस्क के नाम से जानते हैं। तुर्की की कोई भी यात्रा इन दो इमारतों को देखे बिना अधूरी है। मस्जिद के निर्माण का आदेश युवा सुल्तान अहमत प्रथम ने दिया था, मात्र 19 वर्ष की उम्र में। इसके पीछे का कारण आया सोफिया की तुलना में अधिक प्रभावशाली इमारत बनाना था। आज की तारीख़ में ये कहना मुश्किल है कि कौन सी इमारत ज़्यादा भव्य है, पर ये दोनों इमारतें सदियों से एक दूसरे की प्रतियोगी रही हैं। चूँकि ये एक धार्मिक स्थल है, हमें जूते उतार और सर ढक कर अंदर जाना पड़ा। ये इमारत बाहर से अत्यंत भव्य है, और अंदर से सुकूनदायक। 




वहाँ से निकल कर हमने सुल्तान अहमत स्क़वायर पर थोड़ा समय बिताया। यहाँ हर कोने में स्ट्रीट वेंडर हैं। कहा जाता है कि ये स्ट्रीट वेंडर इन सड़कों के गीतकार हैं, उनसे ना होने से यहाँ की रौनक़ ख़त्म हो जाएगी। यहाँ बहुत से लोग आपको बुरी नज़र से बचाने के लिए ईविल आइ बेचते नज़र आएँगे, अब ये आपको बुरी नज़र से बचा पाएगी या नहीं इसका तो पता नहीं पर तुर्की के कल्चर का प्रतीक इससे अच्छा सुविनीयर और कुछ नहीं मिल सकता। साथ ही यहाँ सैंकड़ों लोग रोस्टेड चेस्नट्स और उबले स्वीटकॉर्न और कबाब बेचते दिखेंगे, हर मोड़ और गली में। शाम के वक़्त शहर का ये हिस्सा जीवंत हो उठता है, कहीं कोने में बजता टर्किश संगीत और बोसफ़ोरस के किनारे बैठे हँसते खिलखिलाते लोग। 


हमारा अगला पड़ाव गलाटा टावर था। गलाटा टावर केवल इस्तांबुल में ही नहीं पूरे तुर्की में सबसे विख्यात पर्यटक आकर्षणों में से एक है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह इंस्टाबुल के गलाटा क्वार्टर में स्थित है, जहाँ आया सोफ़िया से बीस मिनट में आसानी से पहुँचा जा सकता है। 


आधे घंटे कतार में खड़े रहने के बाद, मैं आख़िरकार टिकट विंडो तक पहुँच ही गई, टिकट के पैसे का भुगतान किया, और लिफ्ट के लिए एक दूसरी कतार में खड़ी हो गयी।लिफ़्ट से बाहर निकलते हाई एक घुमावदार रास्ता आता है जहाँ सीढ़ियाँ ऊपर जाती हैं। रास्ते में रेस्तरां को पार करते हुए जब मैं शीर्ष पर पहुँची तो मेरे सामने, इस्तांबुल का एक अबाधित दृश्य सामने था। इस जगह से हमें कई नयी पुरानी मस्जिदें दिखायी देती हैं। पुरानी आर्किटेकचर और अद्वितीय दिखने वाली मस्जिदों और नयी इमारतों के बीच का तालमेल बनाता इस्तांबुल शहर यहाँ से कुछ अलग ही नज़र आता है, बिखरा हुआ पर भागता दौड़ता। 



हर महानगर की तरह पिछले 25 वर्षों में इस्तांबुल में काफ़ी जनसंख्या वृद्धि हुई है, और काफ़ी बदलाव भी आए हैं। दो मिलियन लोगों का शहर अब 15 मिलियन लोगों का घर है। समय के साथ इस शहर में भी काफ़ी कुछ बदला है, इसने अच्छा बुरा सब देखा है। पर हर बदलाव ने इस शहर को आकार देने में अपनी भूमिका निभायी है। 



अपने देश से दूर जाकर ऐसा बहुत कम होता है कि हम अपने देश को याद ना करें, पर इस्तांबुल वो जगह है, जहाँ मुझे ये कभी महसूस नहीं हुआ कि मैंने कहीं दूर हूँ। ये शहर भी महानगरों की तरह एक व्यस्त शहर है जहाँ कुछ भी स्थिर नहीं रहता। पर यहाँ एक सुकून भी है और एक मौसिकी भी जिसके इर्द गिर्द मैं ख़ुद को घूमती पाती हूँ। पाँचवी बार जाने के बाद भी हर बार मुझे यहाँ कुछ नया नज़र आता है। ये मेरे लिए एक आम  शहर नहीं एक एहसास है, जो यह प्रतीत नहीं होने देता कि ये मेरा अपना शहर नहीं है। 





पिछली बार इस्तांबुल से वापस आते समय मेरे टैक्सी ड्राइवर ने टूटी फूटी अंग्रेज़ी में मुझसे सवाल किया, “आपको इस्तांबुल में क्या ख़ास लगा?”


मैंने जवाब दिया, “सबकुछ”


फिर उसने मुझसे पूछा, "क्या आपको पता है यहाँ यूरोप एशिया से मिलता है ..." 


मैं मुस्कुराकर बाहर इस्तांबुल के गुलाबी आकाश पर नज़र डाली, जल्द लौटने का वादा करते हुए, कुछ और यादें बटोरने।



 
 
 

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